श्रीमद भगवत गीता

  • दोनों सेनाओंके प्रधान-प्रधान शूरवीरोंकी गणना और सामर्थ्यका कथन।
  • दोनों सेनाओंकी शंख-ध्वनिका कथन।
  • अर्जुनद्वारा सेना-निरीक्षणका प्रसंग ।
  • मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन।
  • अर्जुनकी कायरताके विषयमें श्रीकृष्णार्जुन-संवाद।
  • सांख्ययोगका विषय।
  • क्षात्रधर्मके अनुसार युद्ध करनेकी आवश्यकताका निरूपण।
  • कर्मयोगका विषय।
  • स्थिरबुद्धि पुरुषके लक्षण और उसकी महिमा।
  • ज्ञानयोग और कर्मयोगके अनुसार अनासक्तभावसे नियत कर्म करने की श्रेष्ठताका निरूपण।
  • यज्ञादि कर्मोंकी आवश्यकताका निरूपण।
  • ज्ञानवान् और भगवान्के लिये भी लोकसंग्रहार्थ कर्मोंकी आवश्यकता।
  • अज्ञानी और ज्ञानवान्के लक्षण तथा राग-द्वेषसे रहित होकर कर्म करनेके लिये प्रेरणा।
  • कामके निरोधका विषय।
  • सगुण भगवान्का प्रभाव और कर्मयोगका विषय।
  • योगी महात्मा पुरुषोंके आचरण और उनकी महिमा।
  • फलसहित पृथक्-पृथक् यज्ञोंका कथन।
  • ज्ञानकी महिमा।
  • सांख्ययोग और कर्मयोगका निर्णय।
  • सांख्ययोगी और कर्मयोगीके लक्षण और उनकी महिमा।
  • ज्ञानयोगका विषय।
  • भक्तिसहित ध्यानयोगका वर्णन।
  • कर्मयोगका विषय और योगारूढ़ पुरुषके लक्षण।
  • आत्म-उद्धारके लिये प्रेरणा और भगवत्प्राप्त पुरुषके लक्षण।
  • विस्तारसे ध्यानयोगका विषय।
  • मनके निग्रहका विषय।
  • योगभ्रष्ट पुरुषकी गतिका विषय और ध्यानयोगीकी महिमा।
  • विज्ञानसहित ज्ञानका विषय।
  • सम्पूर्ण पदार्थों में कारणरूपसे भगवान्की व्यापकताका कथन।
  • आसुरी स्वभाववालोंकी निन्दा और भगवद्भक्तोंकी प्रशंसा।
  • अन्य देवताओंकी उपासनाका विषय।
  • भगवान्के प्रभाव और स्वरूपको न जाननेवालोंकी निन्दा और जानने वालों की महिमा।
  • ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादिके विषयमें अर्जुनके ७ प्रश्न और उनका उत्तर।
  • भक्तियोगका विषय।
  • शुक्ल और कृष्णमार्गका विषय।
  • प्रभावसहित ज्ञानका विषय।
  • जगत्की उत्पत्तिका विषय।
  • भगवान्का तिरस्कार करनेवाले आसुरी प्रकृतिवालोंकी निन्दा और दैवी प्रकृतिवालोंके भगवद्भजनका प्रकार।
  • सर्वात्मरूप से प्रभाव सहित भगवान्के स्वरूप का वर्णन।
  • सकाम और निष्काम उपासना का फल।
  • निष्काम भगवद्भक्तिकी महिमा।
  • भगवान्की विभूति और योगशक्तिका कथन तथा उनके जाननेका फल।
  • फल और प्रभावसहित भक्तियोगका कथन।
  • अर्जुनद्वारा भगवान्की स्तुति तथा विभूति और योगशक्तिको कहने के लिये प्रार्थना।
  • भगवान्द्वारा अपनी विभूतियोंका और योगशक्तिका कथन।
  • विश्वरूपके दर्शन-हेतु अर्जुनकी प्रार्थना।
  • भगवान्द्वारा अपने विश्वरूपका वर्णन।
  • संजयद्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूपका वर्णन।
  • अर्जुनद्वारा भगवान्के विश्वरूपका देखा जाना और उनकी स्तुति करना।
  • भगवान्द्वारा अपने प्रभावका वर्णन और अर्जुनको युद्धके लिये उत्साहित करना।
  • भयभीत हुए अर्जुनद्वारा भगवान्की स्तुति और चतुर्भुजरूपका दर्शन करानेके लिये प्रार्थना।
  • भगवान्द्वारा अपने विश्वरूपके दर्शनकी महिमाका कथन तथा चतुर्भुज और सौम्यरूपका दिखाया जाना।
  • बिना अनन्यभक्तिके चतुर्भुजरूपके दर्शनकी दुर्लभताका और फलसहित अनन्यभक्तिका कथन।
  • साकार और निराकारके उपासकोंकी उत्तमताका निर्णय और भगवत्प्राप्तिके उपायका विषय।
  • भगवत्-प्राप्त पुरुषोंके लक्षण।
  • ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञका विषय।
  • ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुषका विषय।
  • ज्ञानकी महिमा और प्रकृति-पुरुषसे जगत्की उत्पत्ति।
  • सत्, रज, तम–तीनों गुणोंका विषय।
  • भगवत्प्राप्तिका उपाय और गुणातीत पुरुषके लक्षण।
  • संसारवृक्षका कथन और भगवत्प्राप्तिका उपाय।
  • जीवात्माका विषय।
  • प्रभावसहित परमेश्वरके स्वरूपका विषय।
  • क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तमका विषय।
  • फलसहित दैवी और आसुरी सम्पदाका कथन।
  • आसुरी सम्पदावालोंके लक्षण और उनकी अधोगतिका कथन।
  • शास्त्रविपरीत आचरणोंको त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों के लिये प्रेरणा।
  • श्रद्धाका और शास्त्रविपरीत घोर तप करनेवालोंका विषय।
  • आहार, यज्ञ, तप और दानके पृथक्-पृथक् भेद।
  • ॐतत्सत्के प्रयोगकी व्याख्या।
  • त्यागका विषय।
  • कर्मों के होने में सांख्य सिद्धान्त का कथन।
  • तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुखके पृथक्-पृथक् भेद।
  • फलसहित वर्ण धर्म का विषय।
  • ज्ञाननिष्ठा का विषय।
  • भक्ति सहित कर्मयोग का विषय।
  • श्रीगीताजीका माहात्म्य।